मैना का प्रस्ताव / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
कह मैना मुख वचन विचारी। सुनहु श्रवण करि वात हमारी।।
हमतुम पुरविल प्रेम चिन्हारी। सो अब प्रगट भयो उजियारी।।
बहुत प्रेम तुम मोसन कीना। पायो प्रेम अंत गति चीन्हा।।
राजकुँअरिकर आयस पाओं। तो विनती कछु वकति सुनाओं।।
कामिनि कहयो तजहु चित चिन्ता। तुमते मोहि अवर नहिं मिंता।।
विश्राम:-
कहहु जो तुव मन मावई, सुना श्रेवण चित लाय।
तांहिते आनकरो नहीं, कहु मन कपट दुराय।।37।।
चौपाई:-
कहुमैना सुनु राजकुमारी। तोरे रुप न देख्यों नारी।।
वतिस लछन तन तोहि विराजे। सुर कन्या मुख देखत लाजै।।
यौवन समय पह्ंव्यो आई। सो सयान जो भोगी जाई।।
जबते देख्यों तोहि कुमारी। तबते मांहि चित चिन्ता भारी।।
विश्राम:-
मोंहि जियको संशय नहीं, संशय इहे विताय।
युग समान पल ना टरै, सुन्दर वदन चिताय।।38।।
चौपाई:-
प्राणमती मुख वोल्यो वानी। सुनु मैना विनु कपट कहानी।।
तांहि सन मोहि सदा सतिमाऊ। तब लगि यज्ञ करो नहि काऊ।।
जो लगि वर नित्य नयन न पंखों। तों लगि नाहि स्वयंवर देखों।।
यहि कारन गौरी शिव ध्यावों। मन वांछित फल में वर पावों।।
तासन संगति सनेही। नातरु जाय विनशि वरु देही।।
कह मैना सुनु सुन्दर रानी। कस वर माँगहु कहहुँ वखानी।।
विश्राम:-
जसवर तुव मन वसै तस, मो कैह कहों वखानी।।
मांहि सुनबे की लालसा, विलग न मानहु आन।।39।।