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दिल्ली जे सब गेलै हो भैया/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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दिल्ली जे सब गेलै हो भैया, ऐलै न घुरियो फेरु रे जान ।
जान भूलिये रे गेलै, देलोॅ वादा-किरियो सब्भे रे जान ।।
छुछ्छे भाषण बांचै हो भैया, छुटलै देशोॅ के सेवा रे जान ।
जान बिसरी रे गेलै, गाँधी जी रोॅ देखलोॅ सपना रे जान ।।
जोॅर-जमीन सें नाता टुटलै, सरंगे उड़ै सेवका रे जान ।
जान बदली रे गेलै, सेवा केरोॅ सब दरसनमो रे जान ।।
सुनें, सुनें, सुनें हो भैया, गलती हमरौ-तोरौ में रे जान ।
जान जनतोॅ रे गलती, जीतै ठगि हमरा रे जान ।।
जाति-धरम हित झगड़ै हो भैया, झगड़ै भाषा लेली रे जान ।
जान भगता रे सपना, मांटी-मांटी मिली कानै रे जान ।।