Last modified on 20 जुलाई 2016, at 03:35

समुझावनी (चेतावनी) / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:35, 20 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धरनी हिय सूझो नहीं, नयन सूझनहि काम।
हाट न सौदा पाइहै, जाके खोटो दाम॥1॥

हरि-जन-सेवा हरि भजन, जग जन्मे फल येह।
धरनी करनी लेहु करि, अन्त खेह की खेह॥2॥

धरनी कर्म-केरावले, भूँजि भजन की भार।
नातरु याही वीजते, होइहै बहु विस्तार॥3॥

धरनी औंधि रहो कहाँ, देखो नयन उघारि।
गाय घेरि जब जाइहै, करिहो कहाँ गोहारि॥4॥

आगि लगे कूआँ कह, बुडत बँधायो नाव।
धरनी वेगहिँ हरि भजो, जो भजिबे को चाव॥5॥

शक्ति पाय हरिभक्ति को, धरनी बिलंब न लाव।
कालि परै कैसी परै, आजु बनो है दाव॥6॥