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अध्यात्म 2 / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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पूर्व पगु पर्त पुरुषोत्तमहि पन्थ जनु, पछिम परतच्छ रनछोर घोरे।
दछिन रमता है रमनाथ के साथ जनु, उतर फिरता है बद्रीश जोँरे॥
दास धरनी कहत साधु संगति रहत, भवन के भीतरे मौन वौरे।
करै विलछानि जेहि आनि सतगुरु मिले, कहो नहि जात यहि वात मोरे॥9॥