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वैराग्य 3 / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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भूलि रहे नारि चित्रसारि फुलवारि वारि, सुगंध सुरंग अँगसेधि लपटाय हो।
धरनी समुझि देख धुआँ धामकेसो लेख, आओ कछु ले न अंत तोहि साथ जाय हो॥
वास न पारस-फूल रं देखि कहा भूल, अन्त होय गो त्रिशूल कोउ ना सहाय हो।
आये हो कहा करन सूझत नहीं मरन, बिनु रामकी शरन पापी पछिताय हो॥11॥