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साधु की काया / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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जहाँ बसे विष्णु और विरंचि महादेव देव, तैंति सो विराजमान ठौर ठौर लाय है।
सींग जाकी वेशुमार आगि पौन पानि छार, केते लोक लोक टोक टोक से वसाय है॥
आत्मा अनूप आप रूप है सरूप धरे देखिये विचारि चारि वेदभेद गाय है।
धरनी कहत साधु सन्तको सुमन्त जानि, सोनको सुमेरु सोई साधुनकी काय है॥24॥