भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निज हीनता / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 21 जुलाई 2016 का अवतरण
जा नो हाँन यज्ञ जाप तीरथ वरत नेम, कीरति-विहीन दीन क्रोध हिय भार है।
विषया में लपटानो निन्दक कुटिल खल, पलक न जानो प्रभु साँझहू सकार है॥
गुरुपितुकी न सेवा गीत ग्रंथ जानो नाहि, दीनो कछु दान नाहि पापको पहार है।
जुगन गिनो न जाय गुन को तो वास नाहि, गुरु-उपदेश एक धरनि अधार है॥21॥