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स्वविषय / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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काय-लागि कायथ कहाओं जाति पाँति बैठि, मेरी तेरी ढेरी वोपुजेरी परमेश्वरी।
सोइ जागी आत्मा अभागीते सुभागी भई, जैसे और केते भये रंकते लखेश्वरी॥
इष्ट तंत्र मंत्र कुटी धाम ठाम राकेरो, दीनों है वनाय आदि अंतलाँ सुधेश्वरी।
अग्र चालि साधु है प्रनालि सो विनोदानन्द, भौन रामानन्द जी के द्वारे धरनेश्वरी॥30॥