मन मेरी लाडिलो है सुन्दर सुघर सुर, हौं तो निशि दिन लाडही लडाइहाँ।
मन मेरो मोहन मैं मोहन तजाँ न अर्गल, जो जो मन माँगि है सो आनि पहुँचाइ हौँ॥
मन मेरो रसिक मैं वाके रस वस भई, गाय वो बजाय नाचि काछिके रिझाई हौँ।
धरनी के मन वच कर्मते यही वरत, प्यारे मन अपने के वारने हो जाइहौँ॥31॥