भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देह में भागवत विचार / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मथुरा मानुष देह, क्रोध कंसासुरजानो। यमुना जियकी दया, त्रिगुण वृन्दावन मानो।
गोपी पाँच पचीस, पवन है हलधर भाई। जोति सरूपी कृष्ण, कोलाहल करत सदाई॥
यशोदा नन्द अनन्द उर, ज्ञान गोवर्द्धन धरिया।
धरनी अंग-प्रसंग करि, श्री भागवत विचारिया॥12॥