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झुमटा / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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127.

की शुभ दिन आज सखि शुभ दिन।टेक।
बहुत दिना पिय बसल विदेश। आजु सुनल निज-अवन संदेश॥
चित चितसरिया में लिहल लिखाय। हृदय कमल धैलाँ दियरा लेसाय॥
प्रेम पलँग तँह धैलों बिछाय। नख सिख सहज सिँगार बनाय॥
नयन धइल दुइ दियरा लेसाय। धरनी धनि पल पल अकुलाय॥1॥

128.

की मोरे देसवां सखी मोरे देसवा। एक अचरज बात मोरे देसवा।टेक।
तरकै उपर भैल ऊपरकै होठ। जेठ लहुर होला लहुरासे जेठ॥
आग पाछु हाला पाछु हाल आगु। जागल सुतेल सुतल उठि जागु॥
नारि पुरुष होला, पुरुष से नारि। माई मनहु नहिँ सवति पियारि॥
कतहुँ भइल भूप कतहुँ भिखारि। कतहु पुरुष होल, कहुँ होल नारि॥
आइल गइल, गइल चलि आ व। धरनी के देसवा कै इहै सुभाव॥2॥

129.

जब लगि वारि कुँआरी अंमा। तव लगि दुलह दुलारी अंमा॥
जे दिन ते बनल वियाह अंमा। से दिन ते मोरे चित चाह अंमा॥
दिन दिन भिनल सुरंग रंग अंमा। नहि भावै सखिनकै संग अंमा॥
सुम दिन परल नियार अंमा। अति रूप वलमु हमार अंमा॥
सेहु धनि कुल उँजियार अंमा। जँह प्रभु रचल धमारि अंमा॥
धरनि मनहि समुझावल अंमा। पुरुब लिखल फल पावल अंमा॥3॥

130.

जेहि भैल गुरु-उपदेस अंमा। अँग अँग मेटल कलेस अँमा॥
सुनत सजग भैल जीव अंमा। जनु रे अगिन परु धीव अंमा॥
उर उपजल प्रभु प्रेम अंमा। छुटि गैल जति व्रत नेम अंमा॥
जब घर भइल अँजोर अंमा। तब मन मानल मोर अंमा॥
देखल से कहल न जाय अंमा। कहले न जग पतियाय अंमा॥
धरनी तिन धनि भाग अंमा। जिन जिय पिय अनुराग अंमा॥

131.

कुसल कतहुँ नहि देखल, कुसल पुछै सब कोई॥टेक॥
कुसल फरै नहि वृज वन, कुसल पहार न पाई॥
कुसल न जलमँह जनमह, कुसल न हाट बिकाई।
कवन से बरन कुसलकर, गोर कि साँवर सोइ॥
कवनिहि ओर कुसल-घर, कुसल कवन रूप, होइ।
कुसल सजीव कि निर्जिव, कुसल पुरुष की नारि।
कुसल जे हमहिँ मिलावै, ताकर मेँ वलिहारि॥
योहिरे कुसल जग कुसल मुसल सकल संसार।
धरनि कुसल भौ तिनकँह, जिन हरि-नाम अधार।5॥