भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिराना मिटाना / बोधिसत्व

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 25 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बोधिसत्व |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे गिराना उतना ही आसान है
जितना एक पत्ती को टहनी से गिराना
या एक आँसू को आँख से पोछना
  
लेकिन मुझे मिटाना उतना ही कठिन है
जितना पत्ती के मन से टहनी और हरेपन को मिटाना
या आँसू की स्मृति से पुतली और पलकों को पोछना