सरद दुलइया / गुणसागर 'सत्यार्थी'
कीनें कीकौ चुरा लओ चैन रे?
मीठी पीरा जा कीकी देंन रे?
नैनूँ की कान्हा नें करबे चोरी,
कौनउँ गुजरिया की गागर फोरी।
बचौ न काँस-तिनूका कोरौ-
दई सारस नें लम्बी तान रे;
देखौ सरद जुन्हइया को सान रे।
नौनी दुलइया धरनि सकुच्याबै,
दूला-अकास मगन मुस्क्याबै।
सेंमर-गिँदउआ-से बदरा उड़-उड़-
धीरें-धीरें डुला रए चौंर रे;
उठी हियरा में मीठी हिलोर रे।
मनइँ-मनें मुसक्या रइँ रानी;
भऔ नदिया कौ निरमल पानी।
सोंन मछरिया अत छनकीली-
मचलें घुँघटा में प्यासे नैन रे;
मन देखत भऔ बेचैन रे।
धान गरब सें भर इठलाई,
कनक-छरी नइ भारन भाई।
ताल तलइयन के ऐना में-
चोखे रूपे-सी चिलकै रैन रे;
मुख-सोभा खिली है पुरैन रे।
जुनरी के भुंटा भए गदरारे,
सहजइँ करत हैं वारे-न्यारे।
चाल हंस की लख मतवारी-
रिसि-मुनियैन कौ टूटै ध्याँन रे,
जौ है सरद दुलइया कौ मान रे।