भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गगन में स्याम घटा रई छाई / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:55, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गगन में स्याम घटा रई छाई।
ईड़ा पिंगला सुक मुनि नारी तारी दई लगाई।
वंक नाल की पोरा में नाना रंग दिखाई।
अरध ऊरध की डोर पकरके बैठे महल में आई।
दिल दीदार समाय के माया घेरन दियो भगाई।
मुरली संख शबद भयो पूरन अनहद धुन घहराई।
बजी नाम की नोबदे सजो अमरपुर जाई।
छिमासील संतोष तखन पै बैठे प्रेम बड़ाई।
जूड़ीराम सतगुरु की महिमा एक नाम लौ लाई।