भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबते सतगुरु शबद लखायो / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जबते सतगुरु शबद लखायो।
मिट गई तास आस भई पूरन नाम निरंख दुख दूर भगायो।
कर सुरतार शबद धुनि जागी ज्ञान महल परचित्त चढ़ायो।
प्रेम घुमड़ अभी रस बरसत उपजत रंग अंग सुख पायो।
गुरु परताप दया साधन की बार-बार चरनन सिर नायो।
जूड़ीराम सतगुरु की महिमा हंस मिलन को पंथ लखायो।