भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूलो वन मन मुरक मिलायो / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:07, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भूलो वन मन मुरक मिलायो।
हरदम हेर-फेर मन यहि विधि शब्द लखा गुरु मोह जगायो।
जगी समाधि सुरत भई सूधी पूरन बृम परम पद पायो।
छूटो भरम सकल भय नासी सत्तनाम गुरु पटो लिखायो।
निस दिन करत विहार नाम को जूड़ीराम आनंद उर छायो।