भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली खेलो सकी हरि के संग / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होली खेलो सकी हरि के संग, ज्ञान सुरंगी करो रंग।
पांच-पचीस लीन्ही बुलवाय, अधर महल में मिली जाय।
रंग राचौ दिल उठत राग, सुरत शबद से मची फाग।
बारामास बसंत होय, कोकल शबद सुनाबे सोय।
खेत साद सुर बजत बीन, होत शबद जेह राग झीन।
ज्ञान गुलाल जहाँ रही पूर, कालकर्म की उठत धूर।
नोबद नाम धुकार होय, पूरन बृम प्रकाश सोय।
आनंद मंगल रहो छाय, गुन गोविंद के कहो गाय।
जूड़ीराम सोई कही पुकार, गुरु के चरण गहो बार-बार।