भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसी समझ बिना बेहाल हो / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:41, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसी समझ बिना बेहाल हो जग परेा कर्म बस कालकी।
हद बेहद दोई मार्ग हैं हो कर्त्ता कर्म शरीर।
झूठ भुलानो भर्म में ज्यौं मृगतृस्ना को नीर हो।
कर्म कलंदर हो रहो जिमि नाचे मरकट्ट भेष।
मन माया की डोर सौं बंधो फिरे चहुदेश हो।
सतगुरु को खोजो नहीं गहो न पद निखान।
नाम बिना भटकत फिरो है चौरासी खान हो।
अक्षर की आसा गई नहिं अक्षर पाई संद।
ठाकुरदास सतगुरु मिलै जूड़ी दिल आनंद हो।