भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदत / ओमप्रकाश मिश्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:03, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश मिश्र |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आय हमरी बहिनें
आपनोॅ बुतरू केॅ
जे हमरोॅ बुतरू संगें खेलै छेलै
उठाय केॅ लै गेलै
जबर्दस्ती
ई बात बादोॅ में साफ भेलै
कि ओकरा खीर खिलाना छेलै जबर्दस्ती ।
हमरी बहिन नै जानै छेलै कि
बुतरुवां खीर बाँटी लेतियै
जों ओकरा हटैलोॅ नै जैतियै जबर्दस्ती ।
खीर बाँटवोॅ के डोॅर ओत्तेॅ नै छेलै
डोॅर छेलै असल वै आदत सें
जे हमरोॅ बुतरुवां पैलेॅ छेलै
छीनी लै के जबर्दस्ती ।