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आई सावन की बहार (कजली) / खड़ी बोली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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- आई सावन की बहार मोरे बारे बलमू
छाई घटा घनघोर बन में, बोलन लागे मोर।
- रिमझिम पनियां बरसै जोर मोरे प्यारे बलमू।।
धानी चद्दर सिंआव, सारी सबज रंगाव।
- वामें गोटवा टकाव, मोरे बारे बलमू।।
मैं तो जइहों कुंजधाम, सुनो कजरी ललाम।
- जहाँ झूले राधे-श्याम, मोरे बारे बलमू।।
बलदेव क्यों उदास पुनि अइहौ तोरे पास।
- मानो मोरा विसवास, मोरे बारे बलमू।।
("कजली कौमुदी" से जिसके संग्रहकर्ता थे श्री कमलनाथ अग्रवाल)
('कविता कोश' में 'संगीत'(सम्पादक-काका हाथरसी) नामक पत्रिका के जुलाई 1945 के अंक से)