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फेर हेतइ भोर / रामदेव झा

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सोचि रहल भ्रमर साँझ भेल कमल बन्द।
होइत प्रात फुजत कमल छूटत ई फन्द॥
नवल सुमन सुरस पीबि गायब नव गीति।
विकसित नव कली संग जोड़ब नव प्रीति॥
उषा होइत हस्ति देल कमल बन्द उजाड़ि।
किन्तु कोष-बद्ध भ्रमर रहल छल विचारि॥
बीति गेल सगर राति बाँचल अछि थोड़।
पूर्व क्षितिज लाल हैत ' फेर हेतइ भोर॥