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चिम्मु / पवन चौहान

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मेरी चार साल की नन्ही बेटी
रोज पूछती है फोन से
चिम्मुओं का हाल
मैं देता रहता हूं उसे हर सूचना
हर तरह से हिसाब

‘अभी-अभी लगे हैं चिम्मु
अभी हरे हैं वे
नहीं चढ़ा उन पर मौसम का रंग
अभी नहीं हुए वे
काले, सफेद और बैंगनी
अभी-अभी जन्मे हैं वे
खोली हैं आंखें टहनी के गर्भ से
लेने लगे हैं अभी-अभी सांस
ताकने लगे हैं बाहर का हर नजारा
दुनिया की रेलमपेल, भागमभाग’

दूर किन्नौर में बैठी मेरी नन्ही बेटी
होती रहती है चिम्मुओं की हर सूचना पर
खुश और दुखी साथ-साथ
कर लेना चाहती है वह
पिता की हर बात की तसल्ली
व्हाट्सएप्प से मांगती है रोज
चिम्मुओं का फोटो

उसे बहुत पसंद हैं चिम्मु
खासकर अपने दोनों पेड़ों के
काले और सफेद चिम्मु
उग आए थे जो वर्षों पहले
बेटी के जन्म से भी
लाया था किसी पक्षी का बीट उन्हे
या फिर ये बीज
आए होगें हवा में लहराते, गाते, झूमते हुए
सिर्फ मेरी बेटी के लिए ही

छुट्टी पर इस बार मां के साथ घर आई बेटी
जान गई थी फिर लगने वालेे हैं चिम्मु
वह बार-बार सुनाती रही मुझे एक ही बात
पापा वहां लदे हैं पेड़
सेब, खुमानी, न्योजा, अखरोट और बादाम से
बस नहीं हैं तो
चिम्मु!

आज तोड़ रहा हूं दोनों पेड़ों के पके चिम्मु
और संभाल कर रख रहा हूं उन्हे
छोटी-सी गत्ते की पेटी में
सुबह पांच बजे वाली मंडी-रिकांगपिओ बस से
भिजवाऊंगा बेटी को रंग-बिरंगे चिम्मु
और ढेर सारा प्यार

नोटः ‘चिम्मु’ अर्थात शहतूत के पेड़ पर लगने वाला फल। स्थानीय भाषा में उसे यहां ‘चिम्मु’ कहा जाता है। किन्नौर हिमाचल का जनजातीय क्षेत्र है जहां सेब, खुमानी, न्योजा, चुली, अखरोट और बादाम जैसे ड्राई फ्रूटस बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं।