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कटारड़ु / पवन चौहान
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सर्दी की गुनगुनी धूप में
छत पर लेटा मैं
देखता रहा बड़ी देर तक
आकाश
एकटक
बूढ़ी अम्मा को लपेटते
अपनी पींजी-अनपींजी रुई के
ढेरों फाहे
कटारडुओं के छोटे-छोटे झूंड
इधर से उधर
तेजी से उड़ते, मस्ती में खेलते
और बांधते रुई को गांठों में
अम्मा को देते सहारा
वे जानते हैं
काम खत्म होते ही
टिमटिमाते तारों
और खिलखिलाते चांद के बीच
अम्मा सुनाएगी उन्हे
कोई बढ़िया-सी कहानी
एक मीठी-सी लोरी
इसलिए तेजी से वे
समेट रहे थे रुई
बहेलिए को चकमा देते हुए
कटारडु -एक छोटी चिड़िया जो मिट्टी से घर की छत या दीवारों पर अपना घोंसला तैयार करती है। उसे यहां की बोली में कटारड़ु के नाम से पुकारा जाता है।