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खिलौना / पवन चौहान

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    (1)
जब लाया गया उसे
वह लाजबाव था
था बड़ा ही सुंदर
बहुत ही प्यारा
सबसे बढ़िया
और पड़ोस के खिलौनों में
सबसे बड़ा
सबकी ऑंखों का तारा

नींद को फैंकते हुए एक तरफ
खेलते रहे मेरे दोनों बच्चे उससे
अपनी कच्ची कल्पनाओं संग
दिन-रात
जी भरकर

दौड़ाते रहे उसे
कच्चे कमरे से लेकर
पक्के फर्श तक
वहॉं से यहॉं
यहॉं से वहॉं
दोनों की अठखेलियां
करती रही हमें लाजबाव
देती रही हौंसला
और अपने छूटे कार्यों को
निपटाने का समय भी

     (2)
मुझे आजमाया गया हर वक्त
चाबी भर दी गई
मनचाही दिशा में
मिटता ही गया मैं
सबकी एक मुस्कान के लिए

अपने गमों से जूझता
चमकाता ही रहा
सबके चेहरे पर
हंसी की लाजबाव रोशनी

बस!
एक अंग टूटते ही मेरा
मैं हो गया बेकार
तय कर गया मैं
चमचमाते फर्श से
कचरे के ढेर तक का सफर
कुछ पलों में ही

मैं हो गया हूँ वृद्धाश्रम के बुजुर्ग जैसा
खुशी के एक-एक पल को समेटता, सहेजता
और अपनी साँसों में जीवन फूँकता

यहाँ पड़ा अनजान-सा
कर रहा हूँ...
अपनी मरी हँसी को
जीवित करने का प्रयास
किसी अपने का इंतजार
फिर से एक घर की तलाश
किसी शोकेस में सजने का अहसास
और
नन्हे, कोमल से हाथों का
फिर से छूने का इंतजार

समय की गति लेकिन
ढकती ही जा रही है मुझे
परत दर परत
धूल के भूरे कफन से
और मैं असहाय-सा पड़ा यहॉं
कर रहा हूँ
खुशियां बटोरने का असफल प्रयास
समझ गया हूँ अब
खिलौना होने का अर्थ।