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इतिहास के पृष्ठों पर / अनिल कार्की

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धार1 पर सूरज चढ़ने से पहले
बकरियों के खुर के निशानों में
खिलेगा ओस का फूल
पीतलिए खाँकर2 की धुन में
नाचेगी गौरैया,

आहा!
कैसा समय है यह
उदासियों के कोख में जो बच्चे पल रहे हैं
वे बड़े होंगे एक दिन
अपनी कंचों भरी जेबों में समय को ठूँसते हुए
पार करेंगे उम्र
बनेंगे प्रेमी/प्रेमिकाएँ
दिलायेंगे उम्र भर साथ निभाने का विश्वास
एक दूसरे को

पहचानेंगे खामोशी की जुबाँ
उदासियों का मतलब
जेबों से निकालेंगे समय
और कंचों की तरह बिखेर देंगे
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1.पहाड़ी 2.पीतल की घंटी