भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनै छै यौ नटबा सिरकी तरमे। / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:17, 10 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=सलहे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सुनै छै यौ नटबा सिरकी तरमे।
तब मलीनियाँ बुधि रचैय
जूड़ा खोलि देल सिरकी तरमे
लट से जादू मलीनियाँ निकालै छै
रचि रचि जादू कियामे मिलबै छै
नटबा भैया के सेवा करैय
नटबा के जादू से सेवा करै छै
रग रगमे जादू भींगलै
सिरकी तरमे नटबा सुतलै
तबे जबाब मलीनियाँ दै छै
हौ देवता कान से जड़ी खिंचै छै
सुगना रूप देवता के छोड़ाबै छै
मानुष तन सीरी सलहेस के बनौलकै
तबे जबाब मलीनियाँ दै छै
सुनऽ सुनऽ हे स्वामी नरूपिया
जल्दी आय तैयारी होइयौ
सिरका-सिरकी, मूर्गा-मूर्गी
खंता-खंती, ढोलक-गुलेता
जतेक समान नटबा के लगै
मनचित राम भैंसा पर लधियौ
लाधि लियौ भैंसा लऽकऽ हय।।