भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो एतबे वचनियाँ बनसप्ति सुनैय / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:50, 10 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=सलहे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हो एतबे वचनियाँ बनसप्ति सुनैय
मैया दुर्गा दरशन देलकै
झूकि परनाम दुर्गा के करैय
झूकि परिणामवाँ बनसप्ति मैया करै गै।
सुनिले सुनिले गै दुर्गा मइया
हा केना बिअहबा बेटा करेबै
तेकर हलतिया हमरा कहि दे
सब भेदवा हमरा मैया बता दियौ गै।
तौ एतबे वचनियाँ बोलै बनसप्ति
तब कहै छै दुर्गा मैया
सुन गे बनसप्ति दिल के वार्त्ता
प्रेम चंडाल सूरजा लगै छै
सात सय बन्हुआ नित बन्है छै
जहि दिन बन्हुआ एको नै होइ छै
अपन पैर जेलमे दै छै।
तब अन्नजल सूरजा करैय
प्रेम चंडालवा राजा सूरजा जखनी लगै यौ।
सूरजा नाम दुनियाँमे सुनियऽ
तब जवाब दुर्गा दै छै
सुनऽ सुनऽ गे बेटी बेटी बनसप्ति
सात सय दुलहा मारल गयलै
कते दुलहा के मुड़ी कटलकै
राज सिंघलदीपमे जखनी
बान्हल मड़बा बन्हले रहलै
कोइ ने सिंघलदीपमे जाइ छै यौ।।
केना बिआह करिकन्हा के होयतै
सुन्दर कनियाँ सिंघलदीप जनमलै
रानी संझावती नाम लगैय।
सुन बनसप्ति दिल के वार्त्ता
जो जोा गै महिसौथामे
बदियल बेटा मोतीराम लगै छै
जाबे नै मोतीराम सिंघलदीप जयतै
जाबे बिअहबा संझा के होयतै गै।