भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ मेॅ जेकरोॅ / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:03, 12 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन निकुंज |अनुवादक= |संग्रह=जरि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हाथ मेॅ जेकरोॅ माला छै
फसलोॅ वही घोटाला छै।
सुक्खोॅ मेॅ बैठी केॅ कानै
कहीं दाल मेॅ काला छै।
नगली मछली तक भी जाय छै
कहै कि मॅुह मेॅ छाला छै।
अन्दर सेॅ सब मौज उड़ावै
बाहर लगलोॅ ताला छै।
पीपरो गाछ दिखावै जरलोॅ
पड़ले हेनोॅ पाला छै।
कब तक शुद्ध गाांग ई रहतै
ठामे सौ गो नाला छै।