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माफ़ीनामा/ अशोक कुमार पाण्डेय

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एक सीधी रेखा खींचना चाहता हूँ
अपने शब्दों में थोड़ी सियाही भरना चाहता हूँ
कुछ आत्मस्वीकृतियाँ करना चाहता हूँ
और अपनी कायरता के लिए माफ़ी माँगने भर का साहस चाहता हूँ

किसी दिन मिलना चाहता हूँ तमाम शहरबदर लोगों से
अपने शहर के फक्कड़ गवैये की मज़ार पर बैठकर लिखना चाहता हूँ एक कविता
और चाहता हूँ कि रंगून तक पहुंचे मेरा माफ़ीनामा.

मैं लखनऊ के उस होटल की छत पर बैठ
किसी सर्द रात ‘रुखसते दिल्ली’ पढ़ना चाहता हूँ
इलाहाबाद की सड़कों पर ग़र्म हवाओं से बतियाते भेड़िये के पंजे गिनना चाहता हूँ
जे एन यू के उस कमरे में बैठ रामसजीवन से माफ़ी मांगना चाहता हूँ
पंजाब की सड़कों पर पाश के हिस्से की गोली
और मणिपुर की जेल में इरोम के हिस्से की भूख खाना चाहता हूँ

मैं साइबेरिया की बर्फ़ से माफी मांगना चाहता हूँ
एक शुक्राना लिखना चाहता हूँ
हुकूमत-ए-बर्तानिया और बादशाह-ए-क़तर के नाम