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यादें तुम्हारी / ओम पुरोहित ‘कागद’
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यादें तुम्हारी
मीठी हैं बहुत
फिर क्यों टपकता है
आँखो से खारा पानी
जब-जब भी
सुनता-देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी!
दिल में
यादें थीं तुम्हारी
जिन पर
रख छोड़ा था मैंने
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत भारी।
आँखों में थीं
मनमोहक छवियाँ
कृतियाँ-आकृतियाँ
लाजवाब तुम्हारी
जिनके पलट रखे थे
सभी पृष्ठ मैंने
अब भी चाहते हैं
वे अपनी मनमानी
इसी लिए टपकता है
रात-रात भर
लाल आँखो से
श्वेत-खारा पानी।
हर रात
ओस बूँद से
क्यों टपकते हैं
आँसू आँख से
घड़घड़ाता है
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश!