भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईसुरी की फाग-27 / बुन्देली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:16, 15 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=ईसुरी }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: ईसुरी

जब सें गए हमारे सईयाँ
देस बिराने गुइयाँ।
ना बिस्वास घरें आबे कौ
करी फेर सुध नइयाँ।
जैसो जो दिल रात भीतरौ
जानत राम गुसैयाँ।
ईसुर प्यास पपीहा कैसी
लगी रात दिन मइयाँ।

भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' की विरहिणी नायिका अपनी वेदना का वर्णन करते हुए कहती है — हे सखी ! जब से मेरे प्रियतम परदेश गए हैं, तब से ये भरोसा भी नहीं रहा कि वे कभी घर भी आएँगे। उन्होंने मुझे याद तक नहीं किया। मेरे ह्रदय की दशा राम ही जानते हैं। मेरी प्यास पपीहे की प्यास जैसी है, जो हृदय में रात-दिन लगी रहती है।