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नेत्र - 2 / प्रेमघन

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दुरे दृग घूंघट की पट ओट सों, चोट कियो करैं लाखन धूल।
लिये जुग भौंहन की घन प्रेम, दिखाय रहे तरवार अतूल॥
भला मतवारे महा जुलमीन, नवीन उपद्रव के नित मूल।
तिन्हैं धनु अंजन रेख में हाय, दई दै दई वरुनी सत सूल॥