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ज़िक्र कंहिं ॻाल्हि जो इएं निकतो! / अर्जुन हासिद

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ज़िक्र कंहिं ॻाल्हि जो इएं निकतो!
जणु त को मुरिकंदड़ अंधेरो हो!

को अची वेठो सिर्फ़ पासे में,
रात जे मर्म जो हुओ पाछो!

हुनजे चेहरे ते एॾी चंचलता,
मूं हवाउनि में पाण खे बि ॾिठो!

कंहिं तसव्वुर जी छांव वांगुर ई,
हू बि हुन खे लॻो हो देरीनो!

हादसो हो, इएं मूं भांयो थे,
हाल अहिड़ो बणियो हो, खुशबू जो!

सोच हासिद न कल्पनाउनि ते,
तोसां शायद कयो आ कंहिं चर्चो!