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चवे थी दिल त इंक़लाब अचे! / अर्जुन हासिद

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चवे थी दिल त इंक़लाब अचे!
वरी घिटीअ में मुंहिंजी शोर मचे!

नओं को नारो को नओं जादू,
लड़ण-मरण में हिकु मज़ो आहे!

नईं का लफ़्ज़ लफ़्ज़ जी माना,
गुनाह मोड़े ऐं मढ़े सधिजे!

विया थी शांत ज़ल्ज़ला आहिनि,
हवा चुरे त कोई साहु खणे!

सॼे जहान सां न कंहिंजो कुझ,
हा पंहिंजो पंहिंजो नंढिड़ो अहम खपे!

उॾामी को किथे बि पहुचे भलि,
तॾहिं बि पंहिंजो हिकड़ो घर घुरिजे!

न ॻोल्हि छांव या अझो हासिद,
जिते किथे रुॻो थी बाहि ॿरे!