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पाण खां परभरो रिढ़ी वेठुसि! / अर्जुन हासिद
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पाण खां परभरो रिढ़ी वेठुसि!
पंहिंजे पाछे खां दूर थी वेठुसि!
छांव में उस ॾिसणु न थे चाहियमि,
वक्त जी लहस खां सुरी वेठुसि!
केॾी सुस-पुस कई इशा इशारानि थे,
सिर्फ़ हिकु मां ई बुत बणी वेठुसि!
मुंहं में साॻियो उहो ई घुंज हुओ,
पर लॻो, मन ई मन खिली वेठुसि!
कुझ थे चाहियुमि चवणु वॾे वाके,
पर थी मजबूर, कुझ लिखी वेठुसि!
बेहसी कंहिं बि फ़न जो वडु कोन्हे,
मूंखे कुर्सी मिली वञी वेठुसि!
केॾा फोटा, गुलनि जूं माल्हाऊं
मां बि हासिद उते अची वेठुसि!