भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्याॻु वैराॻु जूं तमन्नाऊं / अर्जुन हासिद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 22 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुन हासिद |अनुवादक= |संग्रह=मो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्याॻु वैराॻु जूं तमन्नाऊं
इअं बि जकड़े रखनि तक़ाज़ाऊं!

रंग, सुरहाणि, गुल ऐं माक फुड़ा,
मन जे अमृत जूं नरम धाराऊं!

मुरिक ख़ल्के थी ज़िस्म जो ॿंधन,
किअं ॾिठाऊं ऐं किअं सुञाताऊं!

वेढ़ि आंचल ऐं तन लिकाए हलु,
पाठ पूज़/ा खे के त मानाऊं!

नेण कंहिं आरजूअ जा पाछोला,
वेस गेडू, संन्यास, माल्हाऊं!

प्रभु-दर्शन ते भीड़ ॾिसु हासिद,
भेट चाढ़े, थे मोट वरिताऊं!