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सांत में ॻोल्हि ॻोल्हि ॻोल्हि अञां! / अर्जुन हासिद

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सांत में ॻोल्हि ॻोल्हि ॻोल्हि अञां!
का तपति लरिजे़ पेई छांव मथां!

शहरु निर्जीव आत्मा वांगुर,
कुझ चवे तोखे, कुझ पुछे मूंखां!

कंठ गंगा जो, शाम जी झिरमिर,
करि अकेलियूं के ॻाल्हियूं लहरुनि सां!

बुत बणियो अंत ताईं वेठो रहु,
रंग चढ़ंदा के लहंदा वारीअ तां!

वार्तालाप कशमकश जहिड़ो,
सनसनाहट जा अक्स भुणि-भुणि मो!

रोशनी, शोर, हरको गुम हासिद,
सिर्फ़ हिकु मां, कुछी बि कीन सघां!