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देह / भाग 4 / शरद कोकास

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हर बात पर आत्मा की दुहाई देने वालों
पहचानो सिर्फ देह के लिए सजा है यह संसार
वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के धनाढय लोग
बाज़ार से खरीद सकेंगे अपनी पसंद के जींन्स
उन्हें अपनी पसंद की देह में प्रत्यारोपित कर सकेंगे
एक अलग संसार होगा ऐसी देहों का
जहाँ मौत की दहलीज़ पर
असमय दम तोड़ देने जैसी अनहोनी नहीं होगी
जहाँ चलने की विवशता में घिसटते पांव नहीं होंगे
आँखों के मोतियाबिंद में अतीत के धुंधले चित्र नहीं होंगे
दुख से दरकती ज़मीन नहीं होगी त्वचा की झुर्रियों में
एक भयावह संसार जन्म ले चुका होगा समय की कोख से
जहाँ सारे सुख होगें सिर्फ कुछ देहों के लिए
देह एक ही नस्ल के दो वर्गों के बीच बँट चुकी होगी

घनघोर निराशा से ढंका हुआ है अभी देह का आकाश
जहाँ विज्ञान की चमकदार रोशनी अपने खेल दिखा रही है
फिर भी संभव नही हुआ है अभी
दैहिक सहयोग के बगैर देह का उत्पादन
हाँलाकि लोहे की देह बना चुका है मनुष्य
और उसमें जान भी डाल चुका है
झाडू लगा सकती है जो देह हमारे घरों में
बिस्तर बिछा सकती है, लोरी सुना सकती है
बस प्रेम नहीं कर सकती जो अन्य की देह से

अपने अहं के शिखर पर पहुँची देह के वश में नहीं है
देहकोष की मर्यादा में प्राणों को सीमित रखना
भविष्य के हाथों में अतीत के ख़ंजर हैं
और सामने अपनी ही मासूम देह है
अनेक प्रतिरुपों में उपजता है देह का यह अहं
कभी आत्मदया कभी आत्मरति कभी आत्मवंचना जिनसे
गुजरकर यह आत्मघात तक पहुँचती है

परपीड़ा के प्रखर उन्माद में यह
लोहा बनकर प्रवेश करना चाहती है अन्य की देह में
समाप्त कर देना चाहती है उसका देहत्व
और कई बार उसके पास
अपनी देह के अलावा कोई हथियार नहीं होता
यह प्रारब्ध के विलोम में अंत का सम्मोहन है
जहाँ देह ही देहपात के लिए उत्तरदायी है

लेकिन यही अंतिम परिणति नहीं है देह की
अपनी ही देह से प्रेम और
अपनी ही देह से घृणा की असमाप्त संभावनाओं में
एक देह पड़ी है चीरघर में अपने अपमान के लिए प्रस्तुत
एक चील कौव्वों का ग्रास बन रही है
एक जिसे मछलियों ने खा लिया है
एक टुकड़े टुकड़े होकर हवाओं में बिखर गई है
एक आग की लपटों के हवाले कर दी गई है
एक फुटपाथ पर अपने देहमल में लिपटी पड़ी है
नियति के इस वीभत्स चित्र के बरअक्स
एक देह रखी है चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के मध्य
देहदान की गरिमा से स्वयं को मंडित करती हुई
मनुष्य के आत्मावलोकन का मार्ग प्रशस्त कर रही है

मनुष्य की जिज्ञासा के मंच पर पड़ी देह से आती हैं आवाजें
करुणा अपनी परिभाषा से बाहर फूट फूट कर रो रही है
आसमान से उठ रहा है आर्तनाद
हवाओं में गूँज रहा है चीत्कार
बचाओ बचाओ बचाओ बिजली बचाओ उर्जा बचाओ
पेड़ हवा पानी जंगल शेर चिड़िया सब बचाओ
हो सके तो पवित्र मानवता के पक्ष में
इस देह को बचाओ

मस्तिष्क के तरल में तैर रहा है चिंतन
प्रमुख है जिसमें शाश्वत-अशाश्वत की अवधारणाएँ
जहाँ लोक-परलोक, आत्मा-परमात्मा जैसे शब्द डूब उतरा रहे हैं
यज्ञकुण्ड से उठते धुयें में आकार ले रहे मोक्ष के स्वप्न
देह बचाने के लिए चल रहे हैं महामृत्युंजय मंत्र के जाप
अज़ानों और घंटियों में बुदबुदा रही हैं प्रार्थनाएँ
देह के इस अपरिभाषित व्यापार के बीच
नित्य की तरह उग रहा है सूरज
जो डूबता हुआ दिखाई देते भी डूब नहीं रहा
शेष-नि:शेष अपना भ्रम बनाए रखने में सफल हैं

वे हवाएँ अब भी बह रही हैं नील की घाटियों मे
देह की प्रथम वर्षगांठ पर जिन्होंने दुलराया था उसे
रेत के अमरत्व में जन्म ले रहा है देह की अजरता का विचार
और देवताओं के वरदान की अपेक्षा में
जीवन के फिर लौट आने की आस लिए
पिरामिडों में सुरक्षित ममियों पर अनुसंधान जारी है
हर माँ की गोद में खेल रहा है यह ख्याल
जीवित रहे और मुसीबतों से बचा रहे उसका देहांश
उसके माथे पर लगा रही वह शुभांशसा का काला टीका
उसके आशीष में तिरोहित हो रही है उसकी करुणा
पिता अपनी संतान में देख रहे हैं अपना पुनर्जन्म
इस तरह देह का वंश चल रहा है अनवरत

और अपनी देहभान की उम्र में
जहाँ देह को बनाए रखने के लिए
बहुत मुश्किल है दो वक्त की रोटी का जुगाड़
वहीं देह को नष्ट करने के लिए ढेरों प्रलोभन हैं
वहीं है देहानुपात की चिंता में सक्रिय बाजार
कायाकल्प करने वाले रसायन और बूटियाँ
टूट फूट और मरम्मत के लिए चिकित्सा की महंगी दुकानें
जिनके लिए विश्व की सबसे बड़ी समस्या है
पेट पर धीरे धीरे जमा होती है चर्बी
उनके लिए योग और व्यायाम के उपकरणों के विज्ञापन हैं
यह देह की ही है आकांक्षा न केवल खुद को बनाये रखना
बचाये रखना खुद को अपने देहस्वामियों के लिए

अभी भविष्यवाणियों की शक्ल में मंडरा रहे हैं खतरे
देह को मशीनों में बदलने के प्रयास ज़ारी है
निर्माण से पहले ही पल रहा है विध्वंस का विचार
देह ही देह के विरुध्द षड़यंत्र रच रही है
धर्म के भयानक विस्फोटक मस्तिष्क में धारण कर
कटे हाथ पांव और सिरों का ढेर बन रही है देह
देह ही उकसा रही है अन्य देह को
अपने विनाश के लिए
जिसे आत्मोत्सर्ग का नाम दिया जा रहा है।