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तुम्हारे दर से उठेंगे तो फिर / राजश्री गौड़
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तुम्हारे दर से उठेंगे तो फिर कहाँ होंगे,
ज़मीं की गोद में सोया इक आसमाँ होंगे।
चला करेगी ये दुनिया बस उन्हीं रस्तों पर,
हमारे नक़्शे-क़दम जिस पे भी अयाँ होगे।
फसाने लाख छुपा लो तुम अपनी आँखों में,
अगरचे उठ गईं पलकें तो सब बयाँ होंगे।
वो बेबसी है हमारी कि तुम से दूर हुए,
हमारे जैसे बहुत तेरे मेहरबाँ होंगे।
मिला जो मौका महकने का तेरे पहलू में,
शिगुफ़्ता फूलों से मा'मूर गुलसिताँ होंगे।
उठी है गूँज जो नाकूस की वो आहें है,
हमारे दर्द ही मस्जिद की भी अजाँ होंगे।
भुला न पाएगी दुनिया भी जिसको सदियों तक,
कभी न ख़त्म हो जो हम ऐसी दास्ताँ होंगे।
भुला दिया है जो तुमने तो कोई बात नहीं,
फसाने 'राज' तुम्हारे सर ए जबाँ होंगे।