भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल के झरोख़ों में / राजश्री गौड़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:35, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजश्री गौड़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो अपने दिल के झरोख़ों में झाँकता कम है,
उसे ये लगता है चाहत का सिलसिला कम है।

बढ़ा के हाथ भी अब उसकी ओर देख लिया,
हमारे दिल के वो जज़्बात आँकता कम है।

समझ सका न वो फिर भी हमारी फितरत को,
हमारे दिल से तो उस दिल का फासला कम है।

कभी न चूम सका वो तमाम खुशियों को,
मिली हुई हैं जो उनको वो सोचता कम है।

न जाने दिल में ये कैसा धुआं सा घुटता है,
कि उनके बीच दिलों का ये राब्ता कम है।

 न सोचना ये कभी भी कि हार जाऊँगी,
खुदा के घर का मेरे दिल से रास्ता कम है।

झुकी है 'राज' सदा से ही दर पे दिलबर के,
मेरी अना का मेरे दिल से वास्ता कम है।