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धरणी रीटे साँपीण / गढ़वाली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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धरणी रीटे साँपीण,
अगाश रीटली शीणी,
मणछ मगार लाणदो,
विपता भगवान दीणी।
हसा खाण, बांठी बुलाण,
कोया न बाटुड़ लाणो।
चार दिन मानछड़ो
मरेय न अंयागौर जाणो।
कूण कियो बांठो को मरीणो,
कूणी दुबड़िया लायो रीण।
पापी अपरादी ज्योंरा मेरा,
न माणदो कसी की गीण।
शब्दार्थ
<references/>