भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो सैनिक / निधि सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:56, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम कहो
मैं सुनूँगी...
सुनूँगी कहानियाँ रण की
जब कफ़न बाँध कर तुमने
हुँकार भरी थी...
जब अहर्निश तुम
हमारे अस्तित्व की रक्षा में प्रवाहित थे...

तुम्हें देख
साहस बटोरुँगी
गुनगुनाऊँगी वीर रस के गीत
उड़ान भरुंगी निर्बाध...

न डरूँगी किसी तिमिर से
न किसी दुशासन के स्पर्श से...

तुम रहो
कि तुम उत्सर्ग हो
कि तुम्हारी मुस्कान अलंकार है हमारा
कि अन्ततोगत्वा चरित्र हो तुम
मेरे राष्ट्र का...