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डिस्पोजेबल / विनीता परमार

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एक गति जो लयबद्ध है,
जिसमें ताल है,पृथ्वी की गति
चांद की गति, वायुयान की गति
इन गतियों के बीच एक ऐसी गति जो हर तार और लय से परे है,
उसकी गति ने इसकी जरूरत ही न समझी, गति की तीव्रता में भुला दिया
अपने उत्स को और भुलाया मातृत्व और पितृत्व को
उसकी गति ने जनम दिया सरोगेट मदर की संस्कृति को,
इस गति ने संयुक्त से एकल बनाया फिर जीवन के हर कर्म को डिस्पोजेबल बनाया
खाना डिस्पोजेबल,पीना डिस्पोजेबल,सोना डिस्पोजेबल,
सम्वेदना डिस्पोजेबल,हर एक रिश्ता डिस्पोजेबल,
जीवन की हर धारणा डिस्पोजेबल,
प्रकृति की गति प्रतिरोधित करती लगती है गति की ये अबाधता!
और अब भय है,उसके त्रिशंकु हो जाने की इस उपयोगवदिता और बाज़ारवदिता के बीच।