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आज का संवाद / विनीता परमार
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डाल से गिरे सूखे पत्ते
हवा के झोंके से ऐसे उड़े
जैसे इनकी क्या बिसात
स्फुरण से उगे नन्हे पौधे ने
सूखी पतियों को बुलाया
कर लो मेंरा आलिंगन
मेरी जड़ो को कर दो उर्वरा
बनूँ मैं भी एक वृक्ष करूँ मैं सर्वत्र हरा भरा
सूखती शाख को देखकर
लकड़हारे ने कहा तू तो अब जल जायेगी
वो बोली छोड़ दे मुझे मैं भी हूँ प्रकृति की सौगात
बन जाऊगी किसी गिलहरी का घर
जिसका फले फूलेगा परिवार
देख रहा हूँ हर रूप में है संचार
बस आत्मा का संवाद
जिसमें कोई घबराहट नही
कोई बेचैनी नही
जो हो रहा सब ठीक है।