भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारे आलीजा री चंग / राजस्थानी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:32, 9 सितम्बर 2016 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
म्हारे आलीजा री चंग, बाजै अलगौजा रे संग,
फागण आयो रे!
रूंख-रूंख री नूंवी कूपळा, गीत मिलण रा अब गावै
बन-बागां म काळा भंवरा, कळी-कळी ने हरसावै
गूंझै ढोलक ताल मृदंग, बाजे आलीजा री चंग
फागण आयो रे!
आज बणी हर नारी राधा, नर बणिया है आज किसन
रंग प्रीत रो एडो बिखर्यो, गली-गली है बिंदराबन
हिवडै-हिवडै उठे तरंग, बाजे आलीजा री चंग
फागण आयो रे!