भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ंग लगे दरवाज़े / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 9 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=धरती का आयतन / रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच कह गई ज़ुबान सफ़र में
दुश्मन हुए महान ! सफ़र में।

सारे दुख हम सहते रहते
एक आग में दहते रहते
निशि-दिन एक समान सफ़र में।

जिस दिन दुख ने शब्द टटोले
ज़ंग लगे दरवाज़े खोले
काँप गए प्रतिमान सफ़र में।

(राग तोड़ी पर आधारित गीत)