भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मूरत और / आरती मिश्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 13 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मीरा गाती रही
साँसों के झाँझ-मजीरे बजा-बजाकर

समझाती रही प्रेम की पीर
‘मेरो दरद न जाने कोय’
न प्रेम जाना किसी ने न दीवानगी

बस, एक मूरत
और जोड़ दी मन्दिर में