भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जितना दीखै थिर नहीं / दीन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितना दीखै थिर नहीं, थिर है निरंजन नाम।
ठाठ बाट नर थिर नहीं, नाहीं थिर धन धाम॥
नाहीं थिर धन धाम, गाम घर हस्ती घोडा।
नजर जात थिर नाहिं, नाहिं थिर साथ संजोडा॥
कहै 'दीन दरवेश' कहां इतने पर इतना।
थिर निज मन सत् शब्द, नाहिं थिर दीखै जितना॥