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फिर भी क्योंकि... / नीता पोरवाल
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जानता है राजा
कल फिसल भी गयी
तो लौट-फिर कर एक रोज़
उसी के हाथ आएगी राजगद्दी
कि मुद्दे नही होंगे
तो नही होगी राजगद्दी भी
तो कभी बस्तियों में कभी सीमाओं पर
मुर्गों की लड़ाई आयोजित करवाता रहता है राजा
जानता है राजा
उसके राज में हो रहे खुलकर उत्पात
आवाज उठाने वाले
रौंद दिये जायेंगे बेरहमी से
पालतू पागल हाथियों के पाँव तले
दरबान की नौकरी
और कतार में एक से एक विद्वान?
जानता है राजा
पूरी तरह विफल हो चुकी हैं उसकी नीतियाँ
जानता है राजा
आज कटघरे में है वह
फिर भी क्योंकि
घूमफिर कर उसी के पास
आनी है राजगद्दी