भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिछिया तऽ दिहलें बाबू / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:04, 21 सितम्बर 2016 का अवतरण
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई
छोड़ि लिहलें हमसे अँगनवा हो
मोरऽ माटी के अँगनवा I
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई...
सखिया-सहेलिया निबिया
पुतरी-मटकऊती बिबिया
गोड़वा रँगावे वाली,
छोटी-सी बचही-डिबिया
कहँवा पठयिलें मोर चयनवाँ हो
हो रामा होत बिहनवाँ I
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई...
दऊऽड़त रहलिं दुपहर
अमवा बगिचवन में हो
खेलऽत रहलिं दिनभर
छोटका लरिकवन में हो
काट खईलें मोर बचपनवा हो
हो रामा घर के सयनवाँ I
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई...
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई
छोड़ि लिहलें हमसे अँगनवा हो
मोरऽ माटी के अँगनवा I
बिछिया तऽ दिहलें बाबू कँगना तऽ दिहलीं माई...